Monday, August 2, 2021

बेजुबान आम लोगों की भडास

इस बार एक दशक के बाद अपनो के साथ रही. काशी में मेरा जन्म नहीं हुआ. यह मेरा निर्णय हो भी नहीं सकता था. नियति का निर्णय था. पर मेरा कर्म क्षेत्र और धर्म क्षेत्र काशी ही है. यह मुझे ज्ञात हुआ इस बार कोरोना काल में मिले इमरजेंसी वाले अवकाश में. जैसे ही 2020 में कैलेंडर बदला, हर इंसान का जीवन यूँ कहूँ दुनिया का नजरिया ही बदल गया.
सब भागमभाग रूक गया. हर तरफ असफलता, बेकारी, बदहवासी, मृत्यु, संबंधों का असली रंग, काक चेष्ठा बको ध्यान म् वाली पंक्ति सा सहज पटल पर दिखने लगा. कही पढ़ा था कि किसी पीढ़ा में जगत पिता महादेव ने ब्रह्मा से पूछा था क्यों देव आपने ऐसी सृष्टि का निर्माण क्यों किया, ब्रह्मा देव सरल भाव में बोले प्रभु सदाशिव के आदेश अनुसार मैनें केवल सृष्टि बनायी. वह सत्य और सरल है आपसी. उसमें सुख, दुख, अंहकार, इष्या, लालच, लोभ, डर, यह सब मन के द्वारा उत्पन्न भ्रामक भाव है. इन भावो से परे सृष्टि में कोई दोष नहीं प्रभु. 
मतलब यह कि इंसान खराब नहीं उसके मन की चंचलता और अस्थिरता ही सब समस्या की जड़ है. जैसे प्रजापति मानव जाति के और परंपरा के जनक है. पर वो भी अहंकार के कारण शिव जी से बैर रखते थे उनको पूजने योग्य नहीं समझते थे. तो क्या हुआ सति के रुप में शक्ति को शिव से विलग होना पड़ा और तब वीरभद्र ने प्रजापति का अहंकारी शिश काट दिया. हम मनुष्य भी अहंकार की सीमा से परे बह रहे थे. प्रकृति ने एक अदृश्य वायर भेज कर सफाई कर दी. अभी यह सफाई जारी रहेगी जितने भी अहंकारी और अतिवादी जीव होंगे सब को छटंनी से साफ किया जायेगा. बाजारवाद, उपयोगीता वाद, पर्यावरण का विनाश, पंच तत्वों की खरीद फरोख्त वाह रे दुनिया. अति बाजार वादी सोच ने सृष्टि का संतुलन हिला दिया था. जिसमें अमेरिका और यूरोप, और चीन सबसे आगे थे. भारत और अन्य तो अभी पिछलग्गू देश हैं. इसलिए दुसरे के लिए खोदे गये गड्डे में गिरे सब ज्ञानी देश. चोर लोग सबकी बैंड बज गयी. स्वास्थ्य व्यवस्था और मेडिसिन में जितना ज्ञान था सबका भंडा फूट गया. सबकी सच्चाई अब सामने है. अगर भारत ने सौ प्रतिशत विदेशी बाजार के लिए अपने द्वार ना खोले होते तो हमें कोरोना का इतना भयंकर रुप देखने नहीं मिलता. अपने यहाँ भी सबकी भद्द पिट गयी. बालीवुड रो रहा. स्कूल कालेज बंद है. दो साल में केवल आठ से दस माह व्यापार हुआ और काम हुआ. केवल किसान और जवान भाई हर देश की सेवा में जुटे रहे. 
घर में माओं ने और बाहर पुलिस और स्वास्थ्य विभाग ने भी अपनी भूमिका निभाई. पर हाय रे भारत, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, गंदी राजनीति, झूठ का बोल बाला और सच्चे का मुंह काला हुआ. सरकार ने शराब और दवा बेच कर, फिर पेट्रोल और डीजल को महंगा किया, फिर एलपीजी और अब फोन भी. तो जीएसटी के साथ सरकार ने लोगों के मौत पर भी खूब नोट छापा. 
लाखों की नोकरी गयी. कितनों ने मानसिक तनाव में जान दी. मंदिर बंद थे, डर को साझा करने के लिए एक गर में बंद सवजन कहीं काम आए कहीं मित्रों की टोली. कोरोना ने सिखाया कि साफ सफाई, सरल जीवन, प्रकृति का सानिध्य और सहभागिता से भरा जीवन ही असली जीवन ज्ञान है. अभी यह खेल जारी है. अब दुनिया के बड़े वन जल रहे, बाढ़ से यूरोप आहत है. जीवन पर जल प्रलय का संकट मंडरा रहा पर हम नहीं सुधरेंगे. सब भकोस जायेंगे. भस्मासुर की संतान नहीं हम मनु की संतानें हैं. सनातन धर्म है हमारा. अभी भी समय है जड़ो को समझो. वेदो को समझो. जीवन की कला सिखाते हैं. कभी सोचा है अंग्रेज इतने ज्ञानी थे तो हमला क्यों किया. जहाँ गये उस देश को दीमक सा खा गये. यह ज्ञानी नहीं बह रुपिये थे मुस्लिम आक्रांत के समान. उनकी भाषा सिख कर हम आधुनिक होने का मन ही मन ढोंग कर सकते हैं पर जीवन का असली हल वेद ही बताते हैं. गीता का ज्ञान हर समस्या का समाधान है. पर नहीं हम तो अपनी रीतियों को गाली देंगे और विदेशी भूमि से आयी अपनी ही कला या योग को पैसा देकर सिखेंगे. वाह रे भारत, वाह... मौत से पहले मिली इस चेतावनी से कुछ सीखा हो तो उसे अपनाओं खुद को सनातनी कहने में मत लज्जा करो. गर्व से बोलो हम सनातन संस्कृति के पालक है. हर हर महादेव.