Tuesday, May 5, 2009

बेरहम दिल्ली वाले

ईंट और पत्थर के घरों में रहते-रहते और मशीनों के बीच काम करके ऐसा लगता है कि हर इंसान पत्थर हो गया है। ऐसा सोचने की वजह है, हो सकता है कि मैं गलत हूं। लेकिन जब से दिल्ली के दर्शन हुए है यह सोच और पक्की हो गयी है। 61 साल के युवा भारत में बाकी सुविधा को ध्यान रखा जाता है। मसलन सरकार ने आम आदमी के लिए बस की सेवा दी है। जिसमें युवा, बुजुर्ग, स्त्री और पुरूष , यहां तक की निर्जीव सामान के लिए भी जगह है पर उन बच्चों के लिए जगह नहीं होती जो भारत के भविष्य हैं। दिल्ली सरकार की ओर से अपने आम नागरिक को एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए जो बस की सेवा दी है। उसमें सरकारी निगम स्कूलों से निकले बच्चों के लिए कोई जगह नहीं होती। उनके पास बस में सफर करने के लिए पैसे नहीं होते। यह जानकर कंडक्टर उन बच्चों को पहले तो बस में चढ़ने नहीं देते । अगर वो चढ़ गये तो कंडक्टर उन्हें डांट कर बस से उतार देता है। उसके इस काम का विरोध करने के बजाय लोग कंडक्टर का साथ देते हैं। मुङो समझ नहीं आता की इन मासूम बच्चों क ो चिलचिलाती धूप में बस से उतारने में उन्हें जरा भी अजीब नहीं लगता। मुङो जहां तक पता है छोटे बच्चों का बस और ट्रेनों में टिकट नहीं लगता।

Friday, March 27, 2009

चुनावी फार्मूलों की राजनीती

१५ वें लोक सभा के चुनाव की तारीके पड़ चुकी हैं .लेकिन पुरे भारत की सता को चला सकने की स्थिति में कोई भी दल या गटबंधन दिखाई नही देता .सभी बड़े राष्ट्रीय स्तर की पार्टियाँ अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए छोटी और प्रादेशिक स्तर की पार्टियों पर निर्भर हो गईं हैं.न तो भाजपा ,न ही कांग्रेस और न ही तीसरा मोर्चा .जो अभी न ही संगठित है न ही उसकी कोई स्थायी संरचना है। लेकिन बसपा की आलाकमान मायावती के इस मोर्चे के साथ सहयोग देने की बात ने इसे एक जमीं दी है क्योकि जिन चार वाम दलों की जुगत से ये मोर्चा तैयार हुआ है जिसमे पॉँच और छोटे प्रादेशिक दल है .उसकी वैधानिकता कांग्रेस का साथ छोड़ने के बाद से ही ना के बराबर रह गई है इसलिए तो उसने मायावती की मनसा समझ कर उन्हें तीसरे मोर्चे में लाने के लिए प्रधानमंत्री पद के उमीदवार के रूप में दिखाया । ताकि जनता उनके किए को भूल जाए .क्योकि वो जानते थे की भारतीय जनता दिखाती बेवकूफ है लेकिन है बड़ी चालू तभी तो ४ वें आम चुनाव में कैसे कांग्रेस को पटखनी दी .इतना दूर जाने की क्या जरुरत है .१४ वें आम चुनाव में ही भाजपा को ही कहीं मुहं दिखने लायक नही छोडा.इस बार वो इन नेतावो और इनकी पार्टी का क्या करेगी .ये तो चुनाव के परिणाम ही बताएँगे .लेकिन अगर हम राजग को या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की स्थिति को देखें तो पता चलता है की दोनों की ही जड़ें हिल चुकी हैं .संप्रग के साथी लालू पासवान और तो और मुलायम भी इनका साथ छोड़ कर अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं .और वही राजग के साथी नेता उनका साथ छोड़ कर किसी और दल से उमीदवार बनकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ लड़ने को तैयार है.भाजपा की स्थिति अपने ही जन्म स्थल में कमजोर हो रही है उसमें चार चाँद लगाया पीलीभीत के उमीदवार वरुण गाँधी ने ६ मार्च को सांप्रदायिक भाषण देकर के .मुझे ऐसा लगता है की वरुण से ये भाषण सोच समझ कर दिलवाया गया है ताकि जनता के मतों का धर्म और जाति के आधार पर ध्रुवी करण हो सके .वैसे भी भारत की जनता का धर्म और जाति के आधार पर हमेसा अपने ही नेतावो ने फायदा उठाया है.तभी तो कांग्रेस के सर्वाधिकारवाद को तोड़ने के लिए उन्होंने अजगर का सामाजिक समीकरण वाला फार्मूला इजाद किया चो. चरण सिंह ने . अजगर यानि अहीर ,जाट ,गुजर ,और राजपूत .इसी का विस्तार था मजगर .सियासी खेल खेलने वाले इन नेतावों ने अजगर समीकरण में मुस्लिमों को लाने के लिए मजगर बना दिया .लालू जी ने ऍमवाई यानि की मुस्लिम-यादव के रसायन से पन्द्रह साल तक काम किया लेकिन पिछले चुनाव में मुलायम सिंह ने एक कदम आगे चल कर दलित -मुसलिम -यादव यानि की डी ऍम वाई का प्रयोग किया .

लेकिन इस फार्मूले के लागु होने से पहले ही शेर पर सवा शेर मायावती जी ने मुलायम के इस समीकरण को फेल कर दिया .अपनी सोशल एन्गीनियारिंग का कमाल दिखाया और वो सता में आगई .जिस ब्रह्माण वाद के खिलाफ कासी राम जी ने बसपा की नीव डाली थी .उसी ब्राहमण समुदाय की मदद से वो उतर प्रदेश की सता में आई .ऐसा नही है की सिर्फ़ उतर भारत में ही ऐसे फार्मूले इजाद हुए .कर्णाटक और आन्ध्र में मामूली यानि मारवाडी ,मुस्लिम और लिंगायत एक तराजू में तोले गए .भारत की राजनीती में वो परिवर्तन का समय था जो अभी भी चल रहा है जिसे समझ कर ये प्रादेशिक दल उभरे .लेकिन हमारे देश का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्रिय नेतावों और दलों के लिए इस परिवर्तन को समझ पाना आसान ना था क्योकि उन्होंने हमेसा माना की भारत एकता में अनेकता का देश है लेकिन इस अनेकता को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश नही की .जिसके कारन ये प्रादेशिक स्तर के नेता और दल उभरे और भारतीय राजनीती का अंग हो गए .आज पुरी भारतीय राजनीती पर हावी है.लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है की अजगर से मामूली तक सारे फार्मूले इन नेतावो की लालच के आगे छोटे पड़ गए .ऐसा नही होता तो मायावती कभी अपने दलित वोट बैंक को ब्राह्मणों और मुसलमानों से जोड़ने की कोशिश नही करती .आज वो कांग्रेस के पुराने वोट बैंक पर काबिज हैं ।


कांग्रेस ने लम्बें समय तक इसी दलित ब्रह्मण और मुस्लिम समीकरण पर काम किया .अब मायावती राष्ट्रीय ताकत बनकर उभर रहीं हैं .फर्क बस इतना है की पहले ऊपर सता में ब्राहमण थे .अब दलित नेता विराजमान है.

Wednesday, March 25, 2009

ख्वाब है तो मंजिले है

जिंदगी है..... तो घूमते रहो ???

जिंदगी है तो ख्वाब है_ख्वाब है तो मंजिलें है____मंजिलें है तो फासले है__________फासले है तो रास्ते है_________रास्ते है तो मुश्किलें है____________ _मुश्किलें है तो हौसला है____________ _____हौसला है तो विशवास है____________ _________ _विश्वास है तो जीत है ..............जीत है तो खुसिया हैं ...........खुशिया है तो और खवाब हैं ..................जब ख्वाब है तो जिन्दगी है .

ये लाइन मैंने टीवी पर तब सुनी थी जब गुलजार जी का एल्बम आया था .उसी समय से ये लाइन मुझे पसंद है कल ये लाइन मुझे विष नाम के बन्दे जिसने गरीब रथ की गरीबी पर अपनी प्रत्रिक्रिया दी थी के ब्लॉग से मिला मेरे कॉलेज के लैब के बंद होने का टाइम होने के कारन मैंने इसे पुरा धयान से पढ़ा नही की इसमे उस बन्दे की अपनी भी राय शामिल है.अभी मैंने देखा तो पता चला की ऊपर की लाइन ही मेरी पसंद की है और तो विष महासय के अपने विचार है .इसलिए मैं पहले के पोस्ट को हटा कर केवल अपनी पसंद की लाइन ही रख रही हूँ.उसके आगे मेरे हिसाब से ये लाइन होनी चाहिए .रही बात दुनिया के गोल होने की तो ये सच है.क्योकि इस दुनिया में जब आप किसी अपने से दूर होते है तो वो आप को इसी दुनिया में मिलता है .क्योकि इस दुनिया के अलावा कोई और सच है भी तो नही .किसी मूड पर किसी से मिलना फ़िर दूर होना फ़िर उससे मिलने की चाहत हमारी कोशिशे और विशवास ही हमें उससे मिलाता है .इसी मिलने -दूर होने का नाम तो जिन्दगी है.हम जिन्दगी के हर पडाव पर नए लोगो से मिलते हैजो अपने बनते है अलग हो जाते है.फ़िर हम आगे बड़ते है नए होसले के साथ उन अपनों की याद लिए जो फ़िर मिल जाते है। किसी मोड पर .

Saturday, March 21, 2009

गरीब रथ की गरीबी




होली की छुटी में घर जाने के लिए डेल्ही से बनारस जाने वाली सारी गाड़ियों में सीट देखा ,लेकिन सभी में सीट फुल थी या वेटिंग में थी .घर वालो से मैंने बोल दिया की में नही आ रही हूँ .फ़िर 'जहाँ चाह वहा राह ' वाली कहावत जैसा कुछ हुआ .मेरे जीजा जी को मेरे टिकट न मिलने की ख़बर मिली उन्होंने तुंरत गरीब रथ और समर स्पेशल में वेटिंग की ही टिकट ले ली .मेरे जाने के पहले ही गरीब रथ की टीकट कन्फर्म हो गईं.मैंने मेरे जीमेल से टिकट का प्रिंट आउट निकाला .९ मार्च को शाम ६ .३० पर मेरी ट्रेन पुरानी डेल्ही से थी .मैं और अनु एक साथ स्टेशन के लिए निकले .अनु को नई डेल्ही छोड़ कर मैं पुरानी डेल्ही गई .वहा पहुची तो गरीब रथ लेट थी .ये रथ किस प्लेटफार्म पर आयेगी ये पता ही नही चल रहा था .फ़िर पूछ -ताछ केन्द्र से पता चला कि ट्रेन 3 नम्बर पर आरही है . ६.३० के बजाय ट्रेन ७.०० बजे चली .ऊपर वाले कि कृपा से चली तो .ट्रेन में जी ३ मेरा डिबबा था .जिसमे २३ मेरी सीट थी .अपने सीट पर पहुच कर मैनेसामान रखा मेरे कम्पार्टमेंट में मुझे छोड़ कर ८और लोग थे जिसमे एक दादी जी एक लड़की और५ लड़के और एक अंकल थे .हम सब लोग अजनबी थे .कोई किसी से बात नही कर रहा था .गरीब रथ पुरी एसी है .रेड और व्हाइट रंग की गरीब रथ में १५ डिब्बे थे .ट्रेन के चलते ही एसी ऑन हो गया ।मेरी उपर वाली सीट थी.
कॉलेज में होली खेलने के कारन थोड़ा थकान थी,इसलिए ऊपर जाकर मैं सो गई .मेरे साथ के यात्रियों में एक लड़का था जो थोड़ा चंचल स्वभाव का था .वो भी अपने कॉलेज से होली खेल कर आया था .जिसके कारन उसे सर्दी हो गई थी.वो भी मेरे सामने वाली सीट पर लेट गया .मैं अपने फ्रेंड से फ़ोन पर बात कर रही थी .तभी उसका भी फ़ोन आया .वो अपने छोटे भाई से बात कर रहा था .की वो सोच रहा है की गाड़ी ले ले .इस बार वो अपने पापा से इस बारे मैं बात करेगा .पहले उसने बड़ी -बड़ी गाडियों के नाम लिए फ़िर अंत मैं बाईक पर आगया .मुझे उसकी बात सुनकर हसी आई पर मैंने उसे जाहिर नही होने दिया.वैसे एसी ट्रेन में मेरा ये पहला सफर था.लेकिन मुझे पता था की एसी ट्रेन मैं कम्बल और टाइम से खाना ,नास्ता मिलता है.और मजे की बात ये थी की मेरे साथ बैठे कई लोग का ये एसी से पहला सफर था क्योकि किसी को भी किसी और गाड़ी का तिक्कत नही मिला था .और गरीब रथ की ये तीसरी या चोथी यात्रा थी डेल्ही से बनारस की.क्योकि वो २ मार्च को ही पटरी पर लायी गई थी.नई ट्रेन का नयापन झलक रहा था.अन्दर -बहार से ट्रेन साफ सुथरी थी .सब लोगो अपने -अपने सीट पर बैठ कर नास्ता पानी के लिए पेंट्री वालो का इंतजार कर रहे थे .तभी मेरे सामने वाली सीट बार बैठे उसी लड़के को सर्दी लगने लगी वैसे सर्दी तो सभी को लग रही थी .वो निचे उतरा और लोगो से पूछा भइया हम सुने थे की एसी ट्रेन मैं कम्बल और नास्ता , पानी सब टाइम पर हाजिर होता है यहाँ २ घंटे हो गए न तो कम्बल वाले दिखे न ही चाय पानी वाले .ऊपर से एसी चला दिया है .वो उठा कम्पार्टमेंट से बहार जा कर एसी ऑफ़ कर आया उसके इस कम से सब को रहत मिली क्योकि सब लोगो को ही ठण्ड लग रही थी .अभी सब लोगसोच ही रहे था की क्यो पेंट्री वाले नही आ रहे तब तक टीटी साहब आते दिखे .उनके आते ही उसी बन्दे ने झट से पूछा सर कम्बल और चाय पानी मिलेगा .टीटी ने ताका सा जवाब दिया .नही मिलेगा क्योकि पुरे १५ डिब्बे की ट्रेन में केवल ६० कम्बल ही है.ये सुनकर तो सारे लोगे चकित रह गए वो बंद फ़िर बोला जब कम्बल नही मिलेगा तो हम आप को टिकट भी नही देंगे .पैसा देकर भी खाने पिने और ओड़ने के सामान के लिए तरस रहे है .इससे बेहतर होता की पैसेंजर से जाते कम से कम इतना पैसा तो नही लगता ।
आप कम्बल नही दिलाएंगे तो कोण दिलवाएगा .टीटी ने कहा जा के लालू जी से कहिये की वो आप को कम्बल दे .मेरा काम टिकट देखना है न की कम्बल और खाना बाटना टीटी की ये बात सुनकर मेरे ही कम्पार्टमेंट में बैठे अंकल को गुस्सा आगया .उन्होंने टीटी को कहा ये बताईये की लालू जी आप के नोकर है या आप लालू जी के जो वो यहाँ आकार हमे कम्बल देंगे जरा अपने सुपरवाईजर का नम्बर देना उनको बात दूँ की अब लालू जी ट्रेन में कम्बल और चाय पानी की जिमेदारी संभाले
.वो अंकल सरकारी ऑफिसर थे .टीटी उनकी बात सुन कर सॉरी सर मेरा मतलब ये नही था कहने लगा तब उन्होंने कहा जाओ अपने सीनियर को बुलाकर लाओ तुमसे टिकट कोई चेक नही कराये गा .टीटी चुप चाप चलता बना .थोडी दर में एक उर टीटी के साथ हमारे पास आया .फ़िर सब लोगो ने चुप -चाप टिकट दिखा दिया .टीटी के आने के पहले ही मेरे कम्पार्टमेंट के पांचो लड़के खाना लेने चले गए थे ,पेंट्री १५ वें डिब्बे में थी .वह से एक कंटेनर खाना लेकर वो लो ३० मिनट में आए करीब रात के १०.३० हो रहे होंगे .फ़िर सबने खाना खाया .खाने में वेग बिरयानी था .चावल कचे थे सभी ने थोड़ा सा खा के .और जो डिब्बे हम लोगो ने जयादा ले लिया था उसे हमारे डिब्बे में खाना न पाने वालो को दे दिया गए .इसके बाद हम सब लोबात करने लगे की ये सफर जिंदगी भर याद रहेगा .अब कभी खाना , पानी और कम्बल के बिना किसी सफर पर नही जायेंगे .फ़िर सब लोग इस बात से उबरने के लिए लैपटॉप मैंने डेल्ही ६ देखने बैठ गए थोड़े देर बाद सभी अपनी -अनपी सीट पर जा कर लम्बी तन कर सो गए .सुबह उठे तो कुछ लोग जा चुके थे .बस बनारस जाने वाले लोग ही बचे थे .फ़िर मैं सीट से निचे आई एक कप चाय किस्मत से मिल गई .फ़िर उन्ही अंकल से रात के मेड पर बात होने लगी .उनसे हम लोगो ने कहा इसका उपाय क्या है तो उन्होंने कहा उपाय तो है की ट्रेन से उतर कर अपनी प्रतिक्रिया रेलवे की नूत बुक में लिखे लिकिन कोई ऐसा करता नही समस्या होती है उसे झेलते है फ़िर भूल जाते है ऐसा नही होना चाहिए हम लोगो को उससे नोट बुक मंगा कर अपनी शिकायत लिखनी चाहिए थी ये और बात है की वो हमे नोट बुक लाकर नही देता .

Thursday, March 19, 2009

वो तीन राते

एक दिन क्लास में प्रधान सर ने एलुमनाई मीट की बात करते _करते आनेवाले ८ मार्च को 'महिला दिवस ' पर महिला विशेषांक निकलने की जिमेदारी हम १४ लड़कियों पर डाली .हमने बड़े उत्साह से ये जिमेदारी ले ली .फरवरी के तीसरे हफ्ते से हम लोगो ने आपस में बात -चीत करके निर्णय किया कि हम अपने पेपर में किस मुद्दे को उठाएंगे .फ़िर प्रधान सर से हमने अपना आईडिया शेयर किया .सर ने भी हमे पेपर के लिए ढेर सारे सुझाव दिये.फ़िर उन्होंने हमे अनिल सर कि मदद लेने को कहा .सर से बात करके हम लोगो ने अपने काम बाट लिए .फ़िर सभी लड़कियों ने १४ महिला पत्रकार का इंटरव्यू लिया और अपने अनुभव भी लिखे .इसके अलावा महिला प्रेस क्लब की सचिव ,ब्लॉग की दुनिया में महिला का रोल ,देल्ही में काम करने वाली बंगला देशी महिलाओ के बारे में और अपनी संस्था से पास आउट लड़कियों की स्टोरी के साथ ही भारतीय जन संचार संस्थान के लड़के और लड़कियों के बीच एक सर्वे कराया .जिसका परिणाम बड़ा ही चोकानेवाला था .

कि मीडिया में आने वाली ९५ प्रतिशत लड़किया प्रेम विवाह या अपनी मर्जी से विवाह करना चाहती हैं । जबकि केवल ३५ प्रतिशत लड़के इसके पछ में थे.साथ ही लड़किया पिता की सम्पति में हक नही चाहती थी पर लड़के उन्हें ये अधिकार देने को तैयार थे.लड़कियों ने माना की प्रकृति ने उन्हें शारीरिक रूप से कमजोर बनाया है वो अपनी रक्छा लड़को की तरह नही कर सकती .वही लड़को ने माना कि लड़किया अपनी रक्झा स्वयं कर सकती है ।

हम लोगों को २ मार्च तक सारा मटेरियल सर को दिखाना था .उस दिन तक सभी ने अपना काम लगभग कर लिया था .२ मार्च की मीटिंग में सर ने मटेरियल देखने के बाद पेपर के लेआउट को समझाया .साथ ही एक गुरु मंत्र दिया कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना जरुरी है .हम लोगो ने सर की बात को गाढ़ बांधा .ऐसा नही था कि हम मेहनत नही कर रहे थे पर उस वक्त हम लोग अकेले -अकेले अपना काम कर रहे थे .टीम की तरह काम करना और उसका क्या मजा होता है ये तो हम लोगो को उन तीन दिनों में पता चला जब हम १० लोग हॉस्टल में पेपर का लेआउट डिजाईन , एडिटिंग और प्रूफ़ रीडिंग करके पेपर तैयार करने में तीन रात सोये ही नही .८ बजे खाना खाने के बाद सब किसी एक के कमरे में अपने -अपने लैपटॉप के साथ इकठा होते और फ़िर काम पर लग जाते .एक कमरे में १० लोग, ६ लैपटॉप ,एक बेद वाले रूम में तीन गद्दे या चटाई बिछा कर दस लोग एक -दुसरे की कापिया पढ्ते औरो को सुनाते फ़िर लोट -लोट कर हस्ते फ़िर उसे सही करते .दिन में क्लास और रात में पेपर का काम .हमारी तीन रात और दिन की मेहनत में हम लोगो को बहुत कुछ शिकने को मिला तो साथ ही हम दस एक दुसरे को जानने लगे अभी तक हमारी जान - पहचान थी अब हम दोस्त है इसके अलावा जो सबसे अहम् बात सामने आई वो थी की हमलोगों में केवल सुरभि को लेआउट आता था .औरो को नही.इस कमी से हम लोगो को पेपर तैयार करने में बड़ी मुस्किल हुई .क्योकि ६ लैपटॉप के साथ ६ पेन ड्राइव थे .जो वायरस से फुल थे .जिसके कारन ६ की रात हमारा ८ पेज बनने के बाद भी ३ पेज तीन बार गायब हुआ . सुबह १० बजे तक पेपर तैयार करके देने की हमारी डेड लाइन थी .८ बजे तक हमारा पेपर तैयार था लेकिन अचानक फ़िर तीन पेज गायब हो गया .ये हमारे सब्र की इंतहा थी फ़िर से हमने तीन पेज की स्टोरी एडिट की सुरभि ने फ़िर उसका लेआउट बनाया .अंततः ११.३० बजे हमने सर से ऍप्लिकेशन साइन कराया और पेपर की सॉफ्ट कापी प्रेस में दे दी, जो हमें शाम तक मिली .पेपर के पुरा होने की खुशी थी साथ ही ७ मार्च को पेपर के विमोचन की खुशी उसे और बढ़ा रही थी .आपको ये जानकर अजीब लगेगा की ६ मार्च को सुरभि का जन्म दिन था हम लोगो ने सुरभि को बिना बताये उसका बर्थ डे मानाने का प्लान बनाया .फ़िर हमने चोरी से केक ,कोल्ड ड्रिंक ,चिप्स वगर मगाया .रात के १२ बजे हमने उसे विस किया . थोडी मस्ती की फोटो खिचवाया फ़िर सब लोग अपने काम पर लग गए .अजीब तब लगता था जब सुरभि का फोन आता था ,उसे बर्थ डे विश करने के लिए तो हमें नही चाहते हुए भी उसे ये कहना पड़ता था ,की सुरभि कल बात कर लेना आज कह दो तुम काम कर रही हो .लेकिन सुरभि ने हमारी बात का बुरा नही माना .वो कम मैं लगी रही .५ और ६ तारीख को हम में से कोई क्लास नही गया .सुबह से हॉस्टल मैं ही पेपर की एडिटिंग और लेआउट ,प्रूफ़ रीडिंग में लगे रहे .ये तीन दिन हम सभी के जीवन के होस्टल लाइफ के सबसे अच्छे पल थे .क्योकि इससे पहले हम लोगे परिचित थे लेकिन अब हम सब अच्छे दोस्त है.एक साथ काम कर के हमे बहुत अच्छा लगा .इस पेपर 'तेवर ' ने हमे पत्रकार बना दिया .इससे जुड़े कई अच्छे अनुभव है जो हम लोगो को ता उम्र याद रहेंगे .

Wednesday, January 14, 2009

ये है बनारस के रंग



मैं महिमा सिंह बनारस की रहने वाली हूँ। जो भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जानी जाती है । बनारस उत्तरप्रदेश का एक मशहूर शहर है जिसको वाराणसी ,काशी, मोझह्नागरी के नाम से भी जाना जाता है ऐसा माना जाता है की वाराणसी वरुणा नदी और पतितपावनी गंगा के अस्सी घाटों के बीच बसी भगवान शंकर की नगरी है .इसके अलावा बनारस मंदिरों के शहर औरगलियों के शहर के रूप में भी जाना जाता है.बनारस इन सब के अलावा बनारसी पान,रेल कारखाना ,बनारसी साडी ,भदोही के कालीन जैसे अनेक मशहूर चीजो के लिए जानी जाती है .बनारस के लोग अपने भोलेपन ,सादेपन के साथ ही अपनी चालबाजी और ठगी के लिए भी जाने जाते हैं .मैंने ये दोनों गुन इसलिए दिए क्योकि मुझे लगा की जैसे हर चीज के दो पहलू होते हैं वैसे ही बनारसी लोगो के दोनों रूप जानना जरुरी है.ताकि कोई गलती ना हो .ये तो बात हुई मेरे शहर की .बनारस शिक्षा के क्षेत्र में भी आगे है काशी हिंदू विश्वविद्यालय ,काशी विद्यापीठ ,संस्कृत विश्वविद्यालय ,हरिश्चंद्र महाविद्यालय के अलावा अनेक महिला महाविद्यालय के साथ कई ,सी बी एस ई तथा यू पी बोर्ड के स्कूल भी हैं .एक खास जगह जो मैं भूल गई ,वो है सारनाथ जहा भागवान बुद्ध ने पहला उपदेश दिया था .और अस्सी का एक क्षेत्र मनु बाई यानि रानी लक्ष्मी बाई के जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है . इसके साथ ही कई मनोरंजक प्राकृतिक स्थलभीहै.जैसे लखनिया दरी ,देव दरी ,विन्डम फाल ,मिर्जा पुर का इलाका आदि.मंदिरों की नगरी काशी में हर मन्दिर का अपना महत्व है ,हर मन्दिर की अपनी कहानी है.ये निम्न हैं दुर्गाकुंड,संकटमोचन मन्दिर ,बाबा विश्वनाथ का मन्दिर ,लोलारक कुंड ,कालभैरो ,आसभैरो ,शीतलामाता ,महा काली मन्दिर ,मानस मन्दिर ,संकटामाता ,गौरी माता ,राधाकृषण मन्दिर ,बड़ा गणेश मन्दिर ,पुष्कर मन्दिर आदि अनेक है .साथ ही बनारस के काशी नरेश का रामनगर का किला ,चुनारका किला ,नौगढ़ का किला आदि ,अनेक ऐतिहासिक स्थल भी हैं जो इसकी शोभा बढाते हैं .बनारस पारम्परिकता और आधुनिकता का संगम स्थल भी है .यहाँ एक तरफ़ मेट्रो शहरों की तरह मॉल संस्कृति ,मोटर गाडिया ,मेक्दोनाल्स फास्ट फ़ूड ,बार ,रेस्टुरेंट ,होटल्स ,बनारसी लोग काम के चक्कर में सडको पर भागते नजर आते है वही दूसरी तरफ़ गुदोलिया बाज़ार में छोटी -बड़ी दुकाने ,पान की गुमटी,चाय,पकोड़ी जलेबी की दुकाने ,सड़क पर चलते घोड़ा-गाड़ी ,ढाबा और इन जगहों पर बनारसी लोगो का जुटकरदेशकी राजनीती ,क्रिकेट ,आर्थिक स्थिति पर बहस करना ,साथ ही अपने रोजगार के लिए कोई मुर्गा पकड़ना ,जैसे जो लोग बेरोजगार होते है वे बनारस आने वाले पर्यटकों को बनारस घुमाते है ,और अपना खर्चा निकालते है .यह एक छोटा सा परिचय बनारस का इस बनारसी की जुबानी ,ये परिचय का अंत नही शुरुआत है` मैं अकेली नही इस राह पर और भी है शक्स शामिल इस कांरवा में .बनारस के और भी रंग है पर इसके लिए इंतजार और सही .