Monday, November 22, 2021

यूपीआई तकनीक, भारत के गुरु होने की मिशाल

 75 साल में अपने इतिहास को पुनः गौरवमय बनने वाला देश इस धरती पर भारत ही है। हजार सालों की गुलामी और गैर धर्म का शासन झेलने के बाद अब भारत पुनः अपने वास्तविक रूप में आ रहा है। अपने ज्ञान और अध्यात्म से दुनिया को फिर से प्रभावित और परिवर्तित कर रहा है। वैसे तो भारत का जिक्र दुनिया भर में होता ही रहता है। पर दुनिया की नामी फॉर्चून मैगजीन में जिसकी बात हो, उसमें कुछ तो बात होगी हैं ना! 1947 में आजाद हुआ भारत ने बीते 75 सालों में कई कारनामे किए हैं, जिसके लिए दुनिया ने वह वह किया है पर इस बार UPI बनाकर दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

विश्वगुरु कहलाने वाला हिंदुस्तान वर्षों पहले बेरोजगारी, भूखमरी और गरीबी के लिए मशहूर हुआ करता था पर आज वो एड्वान्स तकनीकी का केंद्र बन रहा है। जिसका पहला उदाहरण मंगलयान था उसके बाद यूपीआई और भी बहुत से आविष्कार हैं। जिसे भारत से सीखने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देश जुगाड़ लगा रहे हैं। आज भारत दुनिया का ‘रियल टाइम पेमेंट’ का सबसे बड़ा मार्केट है। आईए जानते हैं क्या है यूपीआई ?

UPI का पूरा नाम है – Unified Payment Interface यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से आप अपने घर से कहीं भी और कभी भी अपने बैंक अकाउंट से मनी ट्रांसफेर कर सकते हैं। भारत में कहीं भी केरल, गुजरात, कश्मीर या असम कहीं भी। यूपीआई को बनाया है एनपीसीआई(NPCI) ने। जो भारत में सभी बैंक के एटीएम और उनके बीच होने वाले इन्टर बैंक ट्रांजेकसन को संभालता है।

यूपीआई काम कैसे करता है? ये आईएमपीएस (IMPS)यानि IMMEDIATE PAYMENT SERVICE SYSTEM पर काम करता है। इसका इस्तेमाल हम सब मोबाईल का नेट बैंकिंग एप इस्तेमाल करते समय करते हैं। क्या खास है इसमें? ये एप अन्य से अलग और सरल है। ये एप हर दिन हर समय काम करता है वीकेंड में भी। अब मान लीजिए संडे को आपको किसी को आपात स्थिति में हेल्प के लिए पैसे भेजने हैं आप कैसे भेजेंगे किसी अन्य एप पर लॉगइन कर जिसे पैसा भेजना है उसका नाम, बैंक डीटेल और ना जाने क्या-क्या भरना पड़ता है। पर यूपीआई में इतना ताम-झाम नहीं। उस व्यक्ति का यूपीआई आईडी अपने यूपीआई ऐप में लिखना है, कितना पैसा भेजना है वो भरो और आसानी से भेज दो पैसा जिसे भी जरूरत है। ना कोई बैंक डीटेल ना ही समय की बर्बादी। यूपीआई में भी पैसे भेजने की लिमिट है। एक बार में एक लाख रुपये भेज जा सकता है। ट्रांजेकसन फी भी 50 पैसे ही लगता है, ये तो बहुत कम है, है ना। मुझे भी ऐसा ही लगा था। पैसे भेजने के लिए आपको ज्यादा पैसा नहीं देना होगा। इसको कहते हैं जादू !

तो इसकी कहानी कुछ यूं शुरू हुआ कि 2019 में गूगल ने यूएस के फेड्रल रिजर्व बैंक को एक सलाह दिया कि भारत के UPI जैसा कोई तकनीक विकसित करो जैसे Fednow। नहीं तो भविष्य में बड़ी दिक्कत हो जाएगी। अब सोचिए आप विदेश जाएं और आपको रुपये को यूएस डॉलर में या किसी अन्य विदेशी करेंसी में एक्सचेंज ना करना पड़े। भारतीय रुपये को उस डॉलर में बदलने के लिए कनवर्जन चार्ज ना देना पड़े। आज के समय में यूएस सुपर पावर क्यूँ हैं, क्यूँकी उसका डॉलर ग्लोबल करेंसी है। लेकिन जरा सोचिए अगर डॉलर से ये जगह छिन जाए तो। भारत का रुपया या उसकी कोई तकनीक यहाँ राज करने लगे तो। कितना सुन्दर सपना है ना ये। पर ये सपना धीरे-धीरे हकीकत में बदल रहा। क्योंकि भारत के यूपीआई सिस्टम को सिंगापुर में लॉन्च किया गया है। इसके अलावा भूटान, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, हाँग-काँग, जापान और कोरिया जैसे अन्य देशों में लॉन्च होने वाला है। कहने का मतलब यह है कि घर बैठे या वहां जाकर भी यूपीआई से मनी ट्रांसफर हो जाएगा कुछ भी खरीदों। ऐसे ही दुनिया के अन्य देशों में भारत का यूपीआई पेमेंट सिस्टम स्वीकार कर लिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब आप भारत में बैठकर दुनिया के किसी भी कोने से ऑनलाइन शपिंग कर सकेंगे। कहीं भी भुगतान कर सकेंगे।

आईए आपको इसकी कहानी की शुरुआत में ले चलते है। 2011 में यानि एक दशक पहले तक एक उपभोगकर्ता द्वारा पूरे साल में केवल 6 ट्रांजेकसन होते थे। पूरे भारत में कुल एक करोड़ छोटे-बड़े शॉपकीपर्स कार्ड पेमेंट लेते थे। पर तब कार्ड से भुगतान इतना आम नहीं होता था। लोगों में इसकी पहुँच कम थी। इस मोड ऑफ पेमेंट से आम लोग दूर भागते थे। इसके लिए तीन कारण जिम्मेवार थे। पहला था तब सबके पास क्रेडिट कार्ड नहीं होता था। डेबिट कार्ड से पेमेंट लेने के लिए मशीन चाहिए होती थी। इसके अलावा ग्राहक का अकाउंट नंबर, आईएफएससी कोड, बैंक डीटेल की जरूरत होती थी। दूसरा कारण था कि व्यापरी वर्ग को हर कार्ड से ट्रांजेकसन पर मास्टर और वीजा कार्ड कंपनी को 2 प्रतिशस्त का भुगतान करना होता था। ये भुगतान छोटे और मझले दुकानदार के लिए बड़ी बात होती थी। इसके अलावा एटीएम से पैसे और कार्ड का चोरी होना और ना जाने कितने फ़्राड चलते थे। पाँच साल के भीतर 2016 में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम ने यूपीआई लॉन्च किया। यूपीआइ मतलब यूनीफाईड पेमेंट्स इंटरफेस।

क्या करता है यूपीआई सिस्टम। पहले बैंक से पैसा निकालने और भरने के लिए लाइन लगाकर फॉर्म भरकर काम होता था। पर यूपीआई के माध्यम से ऐप ग्राहक की जगह बैंक से पैसा लेता और देता हैं। यानि आपका काम आपका सहयोगी यूपीआई कर रहा। एक ऐसा असिस्टेंट जो मुफ़्त में आपके बैंक से लेन देन करता है और जिसका पूरे भारत में एक जाल-सा है। इसकी मदद से अब आप मुंबई में बैठकर मेघालय, कश्मीर, वेस्ट बंगाल और केरल में भी पेमेंट कर सकते हैं। यूपीआई बैंक के द्वारा बना IMPS network का उपयोग करता है। भुगतान सुरक्षित हो इसलिए डुअल फैक्टर ऑथेन्टीकेशन करता है। इसमें ईमेल आईडी जैसा दिखने वाला आईडी आपका VPA यानि वर्चुअल पेमेंट एड्रेस है जो ग्राहक के मोबाईल नंबर के साथ ही उनके बैंक से भी लिंक हो जाता है। यह यूपीआई पेमेंट की प्रकिया भारत में इसलिए आसान हो गई है क्योंकि भारत में एक अरब लोग आधार कार्ड से लिंक हैं। यूपीआई का सबसे अच्छा गुण है इसका इन्टरओपेरेबिलिटी यानि अगर आप के पास पेटीएम का ऐप है और जहां से आपने कोई समान लिया उसके पास जीपे पेमेंट एप सिस्टम है तो आप अपने फोन से उसके जीपे के QR CODE को स्कैन कर के पेटीएम एप से अपने बैंक से पैसे जीपे पर भेज सकते हैं, यूपीआई के माध्यम से। हुआ ना मैजिक। मतलब आप किसी एक बैंक, किसी एक एप से बंधे हुए नहीं है। आप भुगतान करने के लिए स्वतन्त्र हैं। गौरतलब है कि बीते 21 अक्टूबर 2021 को यूपीआई ने 100 करोड़ डॉलर ट्रांजेकसन का आकड़ा पार कर लिया है। यूपीआई के प्रति रुचि बढ़ाने में फोनपे ने काफी अहम रोल निभाया। बीते साल कोरोना आने पर जब लॉक डाउन में नगद का लें-दें मुश्किल हुआ और लोग इससे घबराने लगे तब फोनपे ने अपने लोगों को छोटे दुकानदरों और रेडीवालों के पास भेजा। उनका बैंक डीटेल लिया इनको यूपीआई से लिंक किया उनको पेमेंट को सरल बनाने के लिए QR code दिया। इसके चलते यूपीआई का उपयोग बढ़ा। इस सिस्टम का प्रसार पूरे भारत में संभव हुआ। यूपीआई के महत्व को बताते हुए बैंक ऑफ बड़ोदा के मालिक कहते हैं कि यूपीआई ने भारत के साथ हमारी भी मदद की है। वर्ल्ड मार्केट में अपनी आईपीओ बढ़ाने में यूपीआई का बहुत सहयोग रहा है। यूपीआई के साथ सबसे खास बात यह है कि ये पर्यावरण फ़्रेंडली भी है। कैसे ? भारत में आरबीआई नोट बनाता और छापता है। ये बनते हैं पेड़ से। अगर भारत के लोग यूपीआई प्लेटफॉर्म से लें-दें करने लग जाएंगे तो नगद और नोट का चलन कम होगा और आरबीआई का बोझ भी कम होगा। अभी हाल ही में सरकार ने ये घोषणा भी की है कि यूपीआई पेमेंट बिना इन्टरनेट के भी हो सकता है।

सवाल ये है कि क्यों चीन, अमेरिका और ब्रिटेन भारत के इस नए तकनीक से जलते हैं। वजह है कि अभी इंटरनेशनल मार्केट में स्विफ्ट मंच है जो बड़े भुगतान करवाता है। हर दिन लगभग 3 करोड़ ट्रांजेकसन होता है स्विफ्ट की निगरानी में। ये एक संदेश वाहक मंच है। जिसका निर्माण 1977 में किया गया था। इस मंच पर  भुगतान के लिए बड़े बैंक 25 से 60 डॉलर प्रति भुगतान लेते है। जो कि कम हो सकता है अगर दुनिया भर के देशों में भारत के यूपीआई तकनीक को अपना लिया जाता है। वैसे भी अब ये स्विफ्ट सिस्टम बहुत पुराना हो चुका है। इंटेरनेट फ़्राड और जालसाजी वाले जमाने में इसकी उपयोगिता और सुरक्षा व्यवस्था संदेह के दायरे में आने लगी है। अगर यूपीआई को इस्तेमाल किया जाएगा जो की एक मुफ़्त मंच है भुगतान का। तब कितनी बचत हो सकती है। यह विचारयोग्य प्रश्न है? इसलिए दुनिया के बड़े देश भारत से इस तकनीक को सीखने के लिए पगलाये हुए हैं। भारत एक विकशील देश है जो करोड़ों उपभोक्ता वाला देश भी है। दुनिया के सभी देशों के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार भी है। इसलिए अब अन्य देश यूपीआई को मान्यता दे रहे है। भारत में अभी 100 करोड़ लोग यूपी का इस्तेमाल करते है। भारत के निवेश और उपभोक्ता बाजार को ध्यान में रखते हुए सभी बड़े देश भारत के सामने नतमस्तक है कि भारत उन्हें यूपीआई तकनीक का राज साझा कर दें। हम रोज अपने देश और उसके सिस्टम को बुरा कहते हैं। पर कभी-कभी देश का सिस्टम ऐसे काम कर देता है जो हर भारतीय के लिए गर्व और सम्मान का विषय भी बन जाता है। यूपीआई ऐसी ही एक तकनीक है।

महिमा सिंह

कॉपी राइटर एण्ड जर्नलिस्ट

Monday, August 2, 2021

बेजुबान आम लोगों की भडास

इस बार एक दशक के बाद अपनो के साथ रही. काशी में मेरा जन्म नहीं हुआ. यह मेरा निर्णय हो भी नहीं सकता था. नियति का निर्णय था. पर मेरा कर्म क्षेत्र और धर्म क्षेत्र काशी ही है. यह मुझे ज्ञात हुआ इस बार कोरोना काल में मिले इमरजेंसी वाले अवकाश में. जैसे ही 2020 में कैलेंडर बदला, हर इंसान का जीवन यूँ कहूँ दुनिया का नजरिया ही बदल गया.
सब भागमभाग रूक गया. हर तरफ असफलता, बेकारी, बदहवासी, मृत्यु, संबंधों का असली रंग, काक चेष्ठा बको ध्यान म् वाली पंक्ति सा सहज पटल पर दिखने लगा. कही पढ़ा था कि किसी पीढ़ा में जगत पिता महादेव ने ब्रह्मा से पूछा था क्यों देव आपने ऐसी सृष्टि का निर्माण क्यों किया, ब्रह्मा देव सरल भाव में बोले प्रभु सदाशिव के आदेश अनुसार मैनें केवल सृष्टि बनायी. वह सत्य और सरल है आपसी. उसमें सुख, दुख, अंहकार, इष्या, लालच, लोभ, डर, यह सब मन के द्वारा उत्पन्न भ्रामक भाव है. इन भावो से परे सृष्टि में कोई दोष नहीं प्रभु. 
मतलब यह कि इंसान खराब नहीं उसके मन की चंचलता और अस्थिरता ही सब समस्या की जड़ है. जैसे प्रजापति मानव जाति के और परंपरा के जनक है. पर वो भी अहंकार के कारण शिव जी से बैर रखते थे उनको पूजने योग्य नहीं समझते थे. तो क्या हुआ सति के रुप में शक्ति को शिव से विलग होना पड़ा और तब वीरभद्र ने प्रजापति का अहंकारी शिश काट दिया. हम मनुष्य भी अहंकार की सीमा से परे बह रहे थे. प्रकृति ने एक अदृश्य वायर भेज कर सफाई कर दी. अभी यह सफाई जारी रहेगी जितने भी अहंकारी और अतिवादी जीव होंगे सब को छटंनी से साफ किया जायेगा. बाजारवाद, उपयोगीता वाद, पर्यावरण का विनाश, पंच तत्वों की खरीद फरोख्त वाह रे दुनिया. अति बाजार वादी सोच ने सृष्टि का संतुलन हिला दिया था. जिसमें अमेरिका और यूरोप, और चीन सबसे आगे थे. भारत और अन्य तो अभी पिछलग्गू देश हैं. इसलिए दुसरे के लिए खोदे गये गड्डे में गिरे सब ज्ञानी देश. चोर लोग सबकी बैंड बज गयी. स्वास्थ्य व्यवस्था और मेडिसिन में जितना ज्ञान था सबका भंडा फूट गया. सबकी सच्चाई अब सामने है. अगर भारत ने सौ प्रतिशत विदेशी बाजार के लिए अपने द्वार ना खोले होते तो हमें कोरोना का इतना भयंकर रुप देखने नहीं मिलता. अपने यहाँ भी सबकी भद्द पिट गयी. बालीवुड रो रहा. स्कूल कालेज बंद है. दो साल में केवल आठ से दस माह व्यापार हुआ और काम हुआ. केवल किसान और जवान भाई हर देश की सेवा में जुटे रहे. 
घर में माओं ने और बाहर पुलिस और स्वास्थ्य विभाग ने भी अपनी भूमिका निभाई. पर हाय रे भारत, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, गंदी राजनीति, झूठ का बोल बाला और सच्चे का मुंह काला हुआ. सरकार ने शराब और दवा बेच कर, फिर पेट्रोल और डीजल को महंगा किया, फिर एलपीजी और अब फोन भी. तो जीएसटी के साथ सरकार ने लोगों के मौत पर भी खूब नोट छापा. 
लाखों की नोकरी गयी. कितनों ने मानसिक तनाव में जान दी. मंदिर बंद थे, डर को साझा करने के लिए एक गर में बंद सवजन कहीं काम आए कहीं मित्रों की टोली. कोरोना ने सिखाया कि साफ सफाई, सरल जीवन, प्रकृति का सानिध्य और सहभागिता से भरा जीवन ही असली जीवन ज्ञान है. अभी यह खेल जारी है. अब दुनिया के बड़े वन जल रहे, बाढ़ से यूरोप आहत है. जीवन पर जल प्रलय का संकट मंडरा रहा पर हम नहीं सुधरेंगे. सब भकोस जायेंगे. भस्मासुर की संतान नहीं हम मनु की संतानें हैं. सनातन धर्म है हमारा. अभी भी समय है जड़ो को समझो. वेदो को समझो. जीवन की कला सिखाते हैं. कभी सोचा है अंग्रेज इतने ज्ञानी थे तो हमला क्यों किया. जहाँ गये उस देश को दीमक सा खा गये. यह ज्ञानी नहीं बह रुपिये थे मुस्लिम आक्रांत के समान. उनकी भाषा सिख कर हम आधुनिक होने का मन ही मन ढोंग कर सकते हैं पर जीवन का असली हल वेद ही बताते हैं. गीता का ज्ञान हर समस्या का समाधान है. पर नहीं हम तो अपनी रीतियों को गाली देंगे और विदेशी भूमि से आयी अपनी ही कला या योग को पैसा देकर सिखेंगे. वाह रे भारत, वाह... मौत से पहले मिली इस चेतावनी से कुछ सीखा हो तो उसे अपनाओं खुद को सनातनी कहने में मत लज्जा करो. गर्व से बोलो हम सनातन संस्कृति के पालक है. हर हर महादेव.

Saturday, April 10, 2021

podcasting kya hai... bazaar main iski pahuch


पॉड़कास्टिंग से मैं क्या समझती हूँ।

पॉड़कास्टिंग मेरे लिए नया शब्द नहीं है। इसके बारे में मैं तब से जानती हूँ, जब मैंने भारतीय जन संचार संस्थान में पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए एड्मिशन लिया था। वहा हिन्दी जर्नलिज़्म के साथ ही र   redio aur tv के क्षेत्र में काम करने की बेसिक जानकारी भी प्रदान की जाती थी। तभी से मैं पॉड़कास्टिंग और कम्यूनिटी रेडियो और रेडियो ब्राडकास्टिंग और एफ़एम रेडियो के बारे में जानती हूँ। पॉड़कास्टिंग के बारे में बहुत समय से पढ़ रही और सुन भी रही। यह  नया माध्यम है। अभिवयक्ति का। हम मानुष खुद को बताने और जताने उर अपने अनुभव साझा करने के लिए भाषा और शारीरिक भावभंगिमा का सहारा लेते हैं। जिसे आज कल समानय समझ जाता है। पूरी धरती पर मानव जाती ही है जो अपनी कहा कह सकती है लिख सकती है। हमारे वेद और पुराण पहले श्रुति आधारित थे। सब जानते हैं। यानि गुरु शिष्य को सभी श्लोक सुनता थे और शिष्य उसे याद करते थे। सो पॉड़कास्टिंग हमारी परंपरा का हिस्सा है। बस आज 21वी सदी में इसका नाम बादल गया है। ये विदेशी भाषा में है इसलिए ये नया है। मुझे याद है मेरे बचपन में मेरे गाँव में आलह और उदल की कहानी सुनने वाला आता था। वो संगीतबद्ध लय में वीरगाथा सुनता था और हम सब सुन कर वीर रस से भर जाते थे। बचपन था इसलिए कल्पना और भाव आती पर था। तो मेरे लिए पॉड़कास्टिंग शब्द नया है। इसको अपलोड करना और डौन्लोड करना नया है। इनेटर्नेट पर इसको कभी भी सुन लेना नया है । हाँ ये नया है, नॉन मीडिया पर्सन के लिए और भारत की जनता के लिए वैसे ही जैसे योगा और ध्यान।

 

पॉड़कास्टिंग क्या है? पॉड़कास्टिंग एक ओडिओ कंटैंट फ़ाइल जैसा है, जैसे रेडियो प्रसारण होता है। जिसे कम्प्युटर और एमपी3 प्लेयर और स्मार्ट फोन में इंटरनेट की मदद से डाउनलोड कर। एक फ़ाइल के रुप में सेव कर सकते है। और इस फ़ाइल को कभी भी पुनः नेट की मदद से डाउनलोड कर सुना जा सकता है। आप इसे साउंड कंटैंट भी कह सकते हैं। जैसे फोटो एक कंटैंट होता है। वैसे ही किसी भी विषय पर बातचित को या किसी के इंटरव्यू को जब कोई केवल आवाज के रूप में किसी डिवाइस में रिकॉर्डर करके सेव किया जाता है। और फिर उसको पब्लिक के लिए या चुने हुए दर्शक के लिए ओडियो फ़ाइल के रूप में नेट की हेल्प से किसी पॉड़कास्टिंग प्लाट फोरम पर या रेडियो के द्वारे या यू ट्यूब पर ब्रोडकास्ट करते हैं। ओडिओ कंटैंट को पॉडकास्ट कहते हैं। और इस प्रक्रिया को पॉड़कास्टिंग कहते हैं। हिन्दी में इसे अगडनीय संज्ञा कह सकते हैं। पॉड़कास्टिंग सुनने लायक और सीखने लायक स्टोरी और सब्जेक्ट मेटेरियल होता है। जैसे म्यूजिक का ओडियो रूप। यह दो लोगों की बातचित के रूप में या किसी दृश्य या कहानी के वर्णन या प्रस्तुति जैसा भी हो सकता है। जैसे महाभारत में संजय ने धृतराष्ट के लिए कुरुक्षेत्र की घटना का सदृश्य वर्णन किया था गीता सार के साथ। यहा हम वक्ता को सुनते है और अपने दिमाग में उस घटना या कहानी या दृश्य को बुनते हैं। ऐसा मेरा मानना है। 

मजे की बात है आज इसे पॉड़कास्टिंग कहते हैं। पर भारत में ये हमेश रहा बस आज की पीड़ी इससे अंछुई है। कैसे हमारे बचपन में नानी और दादी, मासी और मामा और चाचा हमे कहानी सुनते थे। बेड टाइम स्टोरी। जिसको सुन कर 90 के दशक के लोग तो बड़े हुए पर 21वी सदी का बच्चा इन कहानियों से जुड़ नहीं पाया या हम उससे जोड़ नहीं पाये। खैर पॉडकास्ट कोई भी ऐसा कंटैंट है जो ओडियो के रूप में होता है। उसे ही हम पॉडकास्ट कहते हैं। जब इस पॉडकास्ट को किसी ऐसे मंच पर प्रस्तुत करते हैं। जहा से कोई भी इससे सुन सके तो उस प्रक्रिया को पॉड़कास्टिंग कहते हैं। इससे हम अपना खुद का रेडियो स्टेशन भी कह सकते हैं।

 

अब बात करते हैं पॉड़कास्टिंग कैसे होती है।

सबसे पहले अपना पॉडकास्ट बनाए, टॉपिक के अनुसार। फिर इससे अपलोड करने के लिए आपको प्लैटफ़ार्म या मंच की जरूरत होगी। आपके पॉडकास्ट की कास्टिंग के लिए आपको सही मंच चुनना होगा। बहुत से पॉडकास्ट मार्केट में है।  जैसे पॉड बीन और स्प्रेयकर ।

अगर आपका ब्लॉग और वैबसाइट है तो वहा भी कुछ सॉफ्टवर लाइक सिरीऔसली सिम्पल पॉडकास्टिंग की हेल्प से अपना पॉडकास्ट वेब होस्टिंग में संरक्षित कर एक नॉर्मल आर्टिकल पोस्ट की तरह पॉडकास्ट को अपने ब्लॉग में जोड़ सकते हैं। ताकि आपकी आडियन्स या दर्शक इसको सुन सके। पॉडकास्ट बनाने  करने की लिए आप माइक्रोफोन और अपने स्मार्ट फोन को भी उपयोग कर सकते हैं। आजकल स्मार्ट फोन में ही कैमरा, टीवी और रेडिया है। इसलिए स्मार्ट फोन पॉडकोस्टिंग के लिए सही है।

 

बहुत शोध के बाद पता चला है कि पॉड़कास्टिंग व्यापार के प्रचार का नया तरीका भी बन रहा है। यह अमेरिका और यूरोप में बहुत ज्यादा प्रचलित और उपयोगी है। वहा पॉड़कास्टिंग फैसन में है। वहा पर यानि विदेश में लोग पॉड़कास्टिंग में बहुत रुचि लेते हैं और वहा बहुत ज्यादा प्रतियोगिता भी है, पॉड़कास्टिंग के एरिया में। पर भारत में ये अभी नया है। या यू कहे लोग अभी इसके बारे में कम जानते हैं। पर जल्द ही ये फैशन बन जाएगा। पर अभी भी इसमे बहुत स्कोप है। पॉड़कास्टिंग से बिज़नस बूम के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। आपका ब्लॉग है उस पर पॉडकास्ट अपलोड करो, आपके श्रोता बड़ेंगे, क्योकि अब वो आपको सुन भी पा रहे। वो आपसे और आपके विचार से ज्यादा जुड़ रहे।  अपने ब्लॉग पर और पॉड़कास्टिंग कंटैंट में ही अगर आप किसी प्रॉडक्ट का प्रमोशन करते हो। तो आपको इंकम होगी। और श्रोता जुडने से आप और फ़ेमस होंगे। विश्वासनीयता अधिक बड़ेगी इससे आप और अधिक पब्लिक और मार्केट और फ़ालोवर जोड़ सकते हो।

 

 मेरी ही तरह बहुत से लोग लिखना और बोलन बहुत पसंद करते हैं। उन सब के लिए पॉड़कास्टिंग बिलकुल नया और मैजिकल है। इससे आप अपनी बात लोगों तक पहुचा सकते हैं। और बहुत से लोगों को इन्सपाइर कर सकते हैं। टिकटोक जैसे ही आप अपनी बहुत मजबूत फ़ैन फॉलोइंग बना सकते हो। फिर मार्केट और प्रॉडक्ट आपके हाथ में। खैर यह हुई बिज़नस की बात। यह सही विचार को लोगों तक पहुचने का सही तरीका है। क्योकि अब इंटरनेट और मोबाइल सबके पास है, तो दुनिया को अपनी आवाज और विचार के जादू से प्रभावित करना उतना मुश्किल नहीं। तो पॉड़कास्टिंग से कर लो दुनिया मुट्ठी में। वैसे भी नेट का जादू अभी तो जनता पर छाया हुआ है। नए पाकेट में पुराना माल बेचना हमारी आदत है। अरे गाना नहीं सुना क्या {नए पाकेट में तुमको बेंचे चीज़ पूरी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी}।

 


Thursday, April 8, 2021

Positive शब्द और कोरोना

मानव जीवन में शब्दों और समय का ही खेल है. आज की कहानी 'पॉजीटिव' शब्द पर केंद्रित है. शब्द और उसका अर्थ सदैव समान होता है. फर्क पड़ता है कि हम किस भाव से कह रहे.कब कह रहे. कहा कह रहे. इसका प्रभाव सुनने वाले पर क्या पढ़ता है. हूँ  वो क्या है कि हम कभी बोलते समय सोचते नहीं. क्योंकि कभी किसी ने सीखाया नहीं. है ना. यह कहानी भी भारतीय जनता संचार संस्थान से जुड़ी है. तब कि बात है जब आईआईएससी की लिखित परीक्षा पास करके मैं दिल्ली आई साक्षात्कार के लिए. उसके बाद ही आईआईएम सी में चयन होता है. दिल्ली आने की लालसा और नयी जगह का भय. मन में महाभारत मची हुई थी. मेरे पूरे खानदान में कोई पत्रकार नहीं था. इसलिए अनुभव का आश्रय मिलना संभव नहीं था. मेरे दोनों भाइयों और मित्रों का सहयोग था. माता और पिता का स्नेह भी. पर संकट की घड़ी में किसी गुरु का साथ और हाथ होना जरूरी होता है. जो आपको उत्साह दे और मार्ग के सकंट  को हटाने और विजय का मार्ग बताये.  मेरे पास ऐसे कोई गुरु नहीं थे. तो मैंने अपनी अंतर आत्मा को अपना गुरु बनाया. क्योंकि हर व्यक्ति को जीवन में किसी भी दुविधा से केवल यह आत्मा ही बाहर निकालती है. यह जीवन के आरंभ से अंत तक हर पल हमारे सही और गलत चयन पर सुझाव देती है. इसमें ईश्वर का वास होता है. और ईश्वर से बड़ा गुरु कोई नहीं. बस अपनी इच्छा और मन की सरलता लेकर पहुंचे दिल्ली. पूर्णतः आश्वस्त कि हर बात पर सरल रह कर जवाब देना है सकारात्मक रहना है. जिसे पॉजिटिव कहते हैं. यह मेरा गुण भी है. पूरे साक्षात्कार में प्रसन्न होकर मैनें प्रश्नों का उत्तर दिया. अपने चयन के लिए निश्चिन्त थी. परंतु पहली बार में चयन नहीं हुआ. पीड़ा हुई. अति पीड़ा. परंतु फिर मन ने कहा कर्म करना हमारे हक में होता है. परिणाम तो कुछ भी हो सकता है. क्योंकि आवश्यक नहीं आपकी सकारात्मक हर किसी को रास आये. कुछ हफ्ते बाद मेरा चयन हो गया. यह ईश्वर की ओर से दिया गया पुरस्कार था. कहते हैं ना मन की हो तो अच्छा, नहीं हो तो ईश्वर इच्छा. क्योंकि वो जो आपको देता है वो उत्तम होता है. तो अब मैं जेएनयू कैंपस में थी. उत्साह और आनंद से भरपूर. जब हमारी क्लास शुरू हुई तो टीचर लोग आये  और सबने अपना परिचय दिया. कुछ टीचर को कुछ बच्चे याद थे. फिर एक दिन धुलिया सर आये. सबसे बात की सबका परिचय लिया. मैं क्लास में दुसरी पंक्ति में बैठी थी. सर आये सब कुछ बताया और जाते समय रुके और मेरी तरफ देख कर बोले. आपकी क्लास में कोई ऐसा है जो अति सकारात्मक है. उसका किसी से कोई पंगा नहीं हो सकता. सब एक दुसरे को देखने लगे. सर बैठे और बोले मैडम अपना नाम बतायें. मैंने अपना परिचय दिया. सर बोले आपका नाम नहीं याद था परंतु साक्षात्कार के बाद मैंने यह जरूर सोचा कि आपका चयन हुआ की नहीं. आप तो अति सकारात्मक हो. फिर क्लास को संबोधित करते हुए बोले तो किसका किसका झगड़ा हुआ अभी तक महिमा से. सब चुप. ना ही कोई मित्र था न ही कोई शत्रु. सब बस मुस्कुरा कर आपस मुझे बात करने लगे. फिर सर ने पूछा तो लगता सभी आपके मित्र हैं. मैंने कहा हां जी सर अभी तत्काल में ऐसा ही है. आगे का पता नहीं. सर बहुत जोर से हंसे. बोले अच्छा है इस गुण को बनाये रखना. बहुत काम आयेगा पत्रकारिता के मार्ग में. पर आज इस पाजिटिव शब्द को समय और कोरोना ने कितना भयावह अर्थ दे दिया है. 2020 और 2021 में इस शब्द के प्रति लोगों का भाव बदल गया. इसलिए जीवन में कुछ भी स्थित और स्थिर नहीं. सब कुछ समय के साथ बदल जाता है. आपकी सोच समय के अनुसार बदल जाती है. मैं तो आज भी सकारात्मक हूँ. परंतु मानवता और समाज और सरकार के लिए यह सकारात्मक शब्द अब भय और दुख का कारण बन चुका है. एक समय में लोग एक दुसरे को बी पाजीटिव होने का नैतिक ज्ञान दे ते थे पर अब लोग पाजीटिव नहीं निगेटिव होने में सुख अनुभव कर रहे. परंतु चयन अभी भी आपका ही है कि इस अति मुश्किल घड़ी में आप अपने भाव रुप में क्या होना चाहते हैं.  इस नकारात्मक महौल को आप केवल सकारात्मक सोच विचार और व्यवहार से बदल सकते हैं. तो बस सकारात्मक बने रहिए और सुरक्षित रहिये. उपाय और सहयोग और नियम धर्म के पालन से सब संभव है. अगर आपने कोरोना से ठीक होने वालों की कहानी सुनी या पढी है तो आपको पता होगा सब ने सकारात्मक बने रहने और दृढ़ निश्चय से ही यह जंग जीती है. तो जो अच्छा है उसे बचा कर रखना उसके लिए लड़ना जरुरी है. पर सावधान होकर. यहाँ शत्रु दिखता नहीं. बस कंही भी हो सकता है. ताक लगाये बैठा है इसलिए सकारात्मक जीवन जीना ही एक समाधान है. संतुलन ही समाधान है.

Tuesday, May 5, 2009

बेरहम दिल्ली वाले

ईंट और पत्थर के घरों में रहते-रहते और मशीनों के बीच काम करके ऐसा लगता है कि हर इंसान पत्थर हो गया है। ऐसा सोचने की वजह है, हो सकता है कि मैं गलत हूं। लेकिन जब से दिल्ली के दर्शन हुए है यह सोच और पक्की हो गयी है। 61 साल के युवा भारत में बाकी सुविधा को ध्यान रखा जाता है। मसलन सरकार ने आम आदमी के लिए बस की सेवा दी है। जिसमें युवा, बुजुर्ग, स्त्री और पुरूष , यहां तक की निर्जीव सामान के लिए भी जगह है पर उन बच्चों के लिए जगह नहीं होती जो भारत के भविष्य हैं। दिल्ली सरकार की ओर से अपने आम नागरिक को एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए जो बस की सेवा दी है। उसमें सरकारी निगम स्कूलों से निकले बच्चों के लिए कोई जगह नहीं होती। उनके पास बस में सफर करने के लिए पैसे नहीं होते। यह जानकर कंडक्टर उन बच्चों को पहले तो बस में चढ़ने नहीं देते । अगर वो चढ़ गये तो कंडक्टर उन्हें डांट कर बस से उतार देता है। उसके इस काम का विरोध करने के बजाय लोग कंडक्टर का साथ देते हैं। मुङो समझ नहीं आता की इन मासूम बच्चों क ो चिलचिलाती धूप में बस से उतारने में उन्हें जरा भी अजीब नहीं लगता। मुङो जहां तक पता है छोटे बच्चों का बस और ट्रेनों में टिकट नहीं लगता।

Friday, March 27, 2009

चुनावी फार्मूलों की राजनीती

१५ वें लोक सभा के चुनाव की तारीके पड़ चुकी हैं .लेकिन पुरे भारत की सता को चला सकने की स्थिति में कोई भी दल या गटबंधन दिखाई नही देता .सभी बड़े राष्ट्रीय स्तर की पार्टियाँ अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए छोटी और प्रादेशिक स्तर की पार्टियों पर निर्भर हो गईं हैं.न तो भाजपा ,न ही कांग्रेस और न ही तीसरा मोर्चा .जो अभी न ही संगठित है न ही उसकी कोई स्थायी संरचना है। लेकिन बसपा की आलाकमान मायावती के इस मोर्चे के साथ सहयोग देने की बात ने इसे एक जमीं दी है क्योकि जिन चार वाम दलों की जुगत से ये मोर्चा तैयार हुआ है जिसमे पॉँच और छोटे प्रादेशिक दल है .उसकी वैधानिकता कांग्रेस का साथ छोड़ने के बाद से ही ना के बराबर रह गई है इसलिए तो उसने मायावती की मनसा समझ कर उन्हें तीसरे मोर्चे में लाने के लिए प्रधानमंत्री पद के उमीदवार के रूप में दिखाया । ताकि जनता उनके किए को भूल जाए .क्योकि वो जानते थे की भारतीय जनता दिखाती बेवकूफ है लेकिन है बड़ी चालू तभी तो ४ वें आम चुनाव में कैसे कांग्रेस को पटखनी दी .इतना दूर जाने की क्या जरुरत है .१४ वें आम चुनाव में ही भाजपा को ही कहीं मुहं दिखने लायक नही छोडा.इस बार वो इन नेतावो और इनकी पार्टी का क्या करेगी .ये तो चुनाव के परिणाम ही बताएँगे .लेकिन अगर हम राजग को या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की स्थिति को देखें तो पता चलता है की दोनों की ही जड़ें हिल चुकी हैं .संप्रग के साथी लालू पासवान और तो और मुलायम भी इनका साथ छोड़ कर अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं .और वही राजग के साथी नेता उनका साथ छोड़ कर किसी और दल से उमीदवार बनकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ लड़ने को तैयार है.भाजपा की स्थिति अपने ही जन्म स्थल में कमजोर हो रही है उसमें चार चाँद लगाया पीलीभीत के उमीदवार वरुण गाँधी ने ६ मार्च को सांप्रदायिक भाषण देकर के .मुझे ऐसा लगता है की वरुण से ये भाषण सोच समझ कर दिलवाया गया है ताकि जनता के मतों का धर्म और जाति के आधार पर ध्रुवी करण हो सके .वैसे भी भारत की जनता का धर्म और जाति के आधार पर हमेसा अपने ही नेतावो ने फायदा उठाया है.तभी तो कांग्रेस के सर्वाधिकारवाद को तोड़ने के लिए उन्होंने अजगर का सामाजिक समीकरण वाला फार्मूला इजाद किया चो. चरण सिंह ने . अजगर यानि अहीर ,जाट ,गुजर ,और राजपूत .इसी का विस्तार था मजगर .सियासी खेल खेलने वाले इन नेतावों ने अजगर समीकरण में मुस्लिमों को लाने के लिए मजगर बना दिया .लालू जी ने ऍमवाई यानि की मुस्लिम-यादव के रसायन से पन्द्रह साल तक काम किया लेकिन पिछले चुनाव में मुलायम सिंह ने एक कदम आगे चल कर दलित -मुसलिम -यादव यानि की डी ऍम वाई का प्रयोग किया .

लेकिन इस फार्मूले के लागु होने से पहले ही शेर पर सवा शेर मायावती जी ने मुलायम के इस समीकरण को फेल कर दिया .अपनी सोशल एन्गीनियारिंग का कमाल दिखाया और वो सता में आगई .जिस ब्रह्माण वाद के खिलाफ कासी राम जी ने बसपा की नीव डाली थी .उसी ब्राहमण समुदाय की मदद से वो उतर प्रदेश की सता में आई .ऐसा नही है की सिर्फ़ उतर भारत में ही ऐसे फार्मूले इजाद हुए .कर्णाटक और आन्ध्र में मामूली यानि मारवाडी ,मुस्लिम और लिंगायत एक तराजू में तोले गए .भारत की राजनीती में वो परिवर्तन का समय था जो अभी भी चल रहा है जिसे समझ कर ये प्रादेशिक दल उभरे .लेकिन हमारे देश का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्रिय नेतावों और दलों के लिए इस परिवर्तन को समझ पाना आसान ना था क्योकि उन्होंने हमेसा माना की भारत एकता में अनेकता का देश है लेकिन इस अनेकता को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश नही की .जिसके कारन ये प्रादेशिक स्तर के नेता और दल उभरे और भारतीय राजनीती का अंग हो गए .आज पुरी भारतीय राजनीती पर हावी है.लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है की अजगर से मामूली तक सारे फार्मूले इन नेतावो की लालच के आगे छोटे पड़ गए .ऐसा नही होता तो मायावती कभी अपने दलित वोट बैंक को ब्राह्मणों और मुसलमानों से जोड़ने की कोशिश नही करती .आज वो कांग्रेस के पुराने वोट बैंक पर काबिज हैं ।


कांग्रेस ने लम्बें समय तक इसी दलित ब्रह्मण और मुस्लिम समीकरण पर काम किया .अब मायावती राष्ट्रीय ताकत बनकर उभर रहीं हैं .फर्क बस इतना है की पहले ऊपर सता में ब्राहमण थे .अब दलित नेता विराजमान है.

Wednesday, March 25, 2009

ख्वाब है तो मंजिले है

जिंदगी है..... तो घूमते रहो ???

जिंदगी है तो ख्वाब है_ख्वाब है तो मंजिलें है____मंजिलें है तो फासले है__________फासले है तो रास्ते है_________रास्ते है तो मुश्किलें है____________ _मुश्किलें है तो हौसला है____________ _____हौसला है तो विशवास है____________ _________ _विश्वास है तो जीत है ..............जीत है तो खुसिया हैं ...........खुशिया है तो और खवाब हैं ..................जब ख्वाब है तो जिन्दगी है .

ये लाइन मैंने टीवी पर तब सुनी थी जब गुलजार जी का एल्बम आया था .उसी समय से ये लाइन मुझे पसंद है कल ये लाइन मुझे विष नाम के बन्दे जिसने गरीब रथ की गरीबी पर अपनी प्रत्रिक्रिया दी थी के ब्लॉग से मिला मेरे कॉलेज के लैब के बंद होने का टाइम होने के कारन मैंने इसे पुरा धयान से पढ़ा नही की इसमे उस बन्दे की अपनी भी राय शामिल है.अभी मैंने देखा तो पता चला की ऊपर की लाइन ही मेरी पसंद की है और तो विष महासय के अपने विचार है .इसलिए मैं पहले के पोस्ट को हटा कर केवल अपनी पसंद की लाइन ही रख रही हूँ.उसके आगे मेरे हिसाब से ये लाइन होनी चाहिए .रही बात दुनिया के गोल होने की तो ये सच है.क्योकि इस दुनिया में जब आप किसी अपने से दूर होते है तो वो आप को इसी दुनिया में मिलता है .क्योकि इस दुनिया के अलावा कोई और सच है भी तो नही .किसी मूड पर किसी से मिलना फ़िर दूर होना फ़िर उससे मिलने की चाहत हमारी कोशिशे और विशवास ही हमें उससे मिलाता है .इसी मिलने -दूर होने का नाम तो जिन्दगी है.हम जिन्दगी के हर पडाव पर नए लोगो से मिलते हैजो अपने बनते है अलग हो जाते है.फ़िर हम आगे बड़ते है नए होसले के साथ उन अपनों की याद लिए जो फ़िर मिल जाते है। किसी मोड पर .