Thursday, April 8, 2021

Positive शब्द और कोरोना

मानव जीवन में शब्दों और समय का ही खेल है. आज की कहानी 'पॉजीटिव' शब्द पर केंद्रित है. शब्द और उसका अर्थ सदैव समान होता है. फर्क पड़ता है कि हम किस भाव से कह रहे.कब कह रहे. कहा कह रहे. इसका प्रभाव सुनने वाले पर क्या पढ़ता है. हूँ  वो क्या है कि हम कभी बोलते समय सोचते नहीं. क्योंकि कभी किसी ने सीखाया नहीं. है ना. यह कहानी भी भारतीय जनता संचार संस्थान से जुड़ी है. तब कि बात है जब आईआईएससी की लिखित परीक्षा पास करके मैं दिल्ली आई साक्षात्कार के लिए. उसके बाद ही आईआईएम सी में चयन होता है. दिल्ली आने की लालसा और नयी जगह का भय. मन में महाभारत मची हुई थी. मेरे पूरे खानदान में कोई पत्रकार नहीं था. इसलिए अनुभव का आश्रय मिलना संभव नहीं था. मेरे दोनों भाइयों और मित्रों का सहयोग था. माता और पिता का स्नेह भी. पर संकट की घड़ी में किसी गुरु का साथ और हाथ होना जरूरी होता है. जो आपको उत्साह दे और मार्ग के सकंट  को हटाने और विजय का मार्ग बताये.  मेरे पास ऐसे कोई गुरु नहीं थे. तो मैंने अपनी अंतर आत्मा को अपना गुरु बनाया. क्योंकि हर व्यक्ति को जीवन में किसी भी दुविधा से केवल यह आत्मा ही बाहर निकालती है. यह जीवन के आरंभ से अंत तक हर पल हमारे सही और गलत चयन पर सुझाव देती है. इसमें ईश्वर का वास होता है. और ईश्वर से बड़ा गुरु कोई नहीं. बस अपनी इच्छा और मन की सरलता लेकर पहुंचे दिल्ली. पूर्णतः आश्वस्त कि हर बात पर सरल रह कर जवाब देना है सकारात्मक रहना है. जिसे पॉजिटिव कहते हैं. यह मेरा गुण भी है. पूरे साक्षात्कार में प्रसन्न होकर मैनें प्रश्नों का उत्तर दिया. अपने चयन के लिए निश्चिन्त थी. परंतु पहली बार में चयन नहीं हुआ. पीड़ा हुई. अति पीड़ा. परंतु फिर मन ने कहा कर्म करना हमारे हक में होता है. परिणाम तो कुछ भी हो सकता है. क्योंकि आवश्यक नहीं आपकी सकारात्मक हर किसी को रास आये. कुछ हफ्ते बाद मेरा चयन हो गया. यह ईश्वर की ओर से दिया गया पुरस्कार था. कहते हैं ना मन की हो तो अच्छा, नहीं हो तो ईश्वर इच्छा. क्योंकि वो जो आपको देता है वो उत्तम होता है. तो अब मैं जेएनयू कैंपस में थी. उत्साह और आनंद से भरपूर. जब हमारी क्लास शुरू हुई तो टीचर लोग आये  और सबने अपना परिचय दिया. कुछ टीचर को कुछ बच्चे याद थे. फिर एक दिन धुलिया सर आये. सबसे बात की सबका परिचय लिया. मैं क्लास में दुसरी पंक्ति में बैठी थी. सर आये सब कुछ बताया और जाते समय रुके और मेरी तरफ देख कर बोले. आपकी क्लास में कोई ऐसा है जो अति सकारात्मक है. उसका किसी से कोई पंगा नहीं हो सकता. सब एक दुसरे को देखने लगे. सर बैठे और बोले मैडम अपना नाम बतायें. मैंने अपना परिचय दिया. सर बोले आपका नाम नहीं याद था परंतु साक्षात्कार के बाद मैंने यह जरूर सोचा कि आपका चयन हुआ की नहीं. आप तो अति सकारात्मक हो. फिर क्लास को संबोधित करते हुए बोले तो किसका किसका झगड़ा हुआ अभी तक महिमा से. सब चुप. ना ही कोई मित्र था न ही कोई शत्रु. सब बस मुस्कुरा कर आपस मुझे बात करने लगे. फिर सर ने पूछा तो लगता सभी आपके मित्र हैं. मैंने कहा हां जी सर अभी तत्काल में ऐसा ही है. आगे का पता नहीं. सर बहुत जोर से हंसे. बोले अच्छा है इस गुण को बनाये रखना. बहुत काम आयेगा पत्रकारिता के मार्ग में. पर आज इस पाजिटिव शब्द को समय और कोरोना ने कितना भयावह अर्थ दे दिया है. 2020 और 2021 में इस शब्द के प्रति लोगों का भाव बदल गया. इसलिए जीवन में कुछ भी स्थित और स्थिर नहीं. सब कुछ समय के साथ बदल जाता है. आपकी सोच समय के अनुसार बदल जाती है. मैं तो आज भी सकारात्मक हूँ. परंतु मानवता और समाज और सरकार के लिए यह सकारात्मक शब्द अब भय और दुख का कारण बन चुका है. एक समय में लोग एक दुसरे को बी पाजीटिव होने का नैतिक ज्ञान दे ते थे पर अब लोग पाजीटिव नहीं निगेटिव होने में सुख अनुभव कर रहे. परंतु चयन अभी भी आपका ही है कि इस अति मुश्किल घड़ी में आप अपने भाव रुप में क्या होना चाहते हैं.  इस नकारात्मक महौल को आप केवल सकारात्मक सोच विचार और व्यवहार से बदल सकते हैं. तो बस सकारात्मक बने रहिए और सुरक्षित रहिये. उपाय और सहयोग और नियम धर्म के पालन से सब संभव है. अगर आपने कोरोना से ठीक होने वालों की कहानी सुनी या पढी है तो आपको पता होगा सब ने सकारात्मक बने रहने और दृढ़ निश्चय से ही यह जंग जीती है. तो जो अच्छा है उसे बचा कर रखना उसके लिए लड़ना जरुरी है. पर सावधान होकर. यहाँ शत्रु दिखता नहीं. बस कंही भी हो सकता है. ताक लगाये बैठा है इसलिए सकारात्मक जीवन जीना ही एक समाधान है. संतुलन ही समाधान है.

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