Monday, November 22, 2021

यूपीआई तकनीक, भारत के गुरु होने की मिशाल

 75 साल में अपने इतिहास को पुनः गौरवमय बनने वाला देश इस धरती पर भारत ही है। हजार सालों की गुलामी और गैर धर्म का शासन झेलने के बाद अब भारत पुनः अपने वास्तविक रूप में आ रहा है। अपने ज्ञान और अध्यात्म से दुनिया को फिर से प्रभावित और परिवर्तित कर रहा है। वैसे तो भारत का जिक्र दुनिया भर में होता ही रहता है। पर दुनिया की नामी फॉर्चून मैगजीन में जिसकी बात हो, उसमें कुछ तो बात होगी हैं ना! 1947 में आजाद हुआ भारत ने बीते 75 सालों में कई कारनामे किए हैं, जिसके लिए दुनिया ने वह वह किया है पर इस बार UPI बनाकर दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

विश्वगुरु कहलाने वाला हिंदुस्तान वर्षों पहले बेरोजगारी, भूखमरी और गरीबी के लिए मशहूर हुआ करता था पर आज वो एड्वान्स तकनीकी का केंद्र बन रहा है। जिसका पहला उदाहरण मंगलयान था उसके बाद यूपीआई और भी बहुत से आविष्कार हैं। जिसे भारत से सीखने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देश जुगाड़ लगा रहे हैं। आज भारत दुनिया का ‘रियल टाइम पेमेंट’ का सबसे बड़ा मार्केट है। आईए जानते हैं क्या है यूपीआई ?

UPI का पूरा नाम है – Unified Payment Interface यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से आप अपने घर से कहीं भी और कभी भी अपने बैंक अकाउंट से मनी ट्रांसफेर कर सकते हैं। भारत में कहीं भी केरल, गुजरात, कश्मीर या असम कहीं भी। यूपीआई को बनाया है एनपीसीआई(NPCI) ने। जो भारत में सभी बैंक के एटीएम और उनके बीच होने वाले इन्टर बैंक ट्रांजेकसन को संभालता है।

यूपीआई काम कैसे करता है? ये आईएमपीएस (IMPS)यानि IMMEDIATE PAYMENT SERVICE SYSTEM पर काम करता है। इसका इस्तेमाल हम सब मोबाईल का नेट बैंकिंग एप इस्तेमाल करते समय करते हैं। क्या खास है इसमें? ये एप अन्य से अलग और सरल है। ये एप हर दिन हर समय काम करता है वीकेंड में भी। अब मान लीजिए संडे को आपको किसी को आपात स्थिति में हेल्प के लिए पैसे भेजने हैं आप कैसे भेजेंगे किसी अन्य एप पर लॉगइन कर जिसे पैसा भेजना है उसका नाम, बैंक डीटेल और ना जाने क्या-क्या भरना पड़ता है। पर यूपीआई में इतना ताम-झाम नहीं। उस व्यक्ति का यूपीआई आईडी अपने यूपीआई ऐप में लिखना है, कितना पैसा भेजना है वो भरो और आसानी से भेज दो पैसा जिसे भी जरूरत है। ना कोई बैंक डीटेल ना ही समय की बर्बादी। यूपीआई में भी पैसे भेजने की लिमिट है। एक बार में एक लाख रुपये भेज जा सकता है। ट्रांजेकसन फी भी 50 पैसे ही लगता है, ये तो बहुत कम है, है ना। मुझे भी ऐसा ही लगा था। पैसे भेजने के लिए आपको ज्यादा पैसा नहीं देना होगा। इसको कहते हैं जादू !

तो इसकी कहानी कुछ यूं शुरू हुआ कि 2019 में गूगल ने यूएस के फेड्रल रिजर्व बैंक को एक सलाह दिया कि भारत के UPI जैसा कोई तकनीक विकसित करो जैसे Fednow। नहीं तो भविष्य में बड़ी दिक्कत हो जाएगी। अब सोचिए आप विदेश जाएं और आपको रुपये को यूएस डॉलर में या किसी अन्य विदेशी करेंसी में एक्सचेंज ना करना पड़े। भारतीय रुपये को उस डॉलर में बदलने के लिए कनवर्जन चार्ज ना देना पड़े। आज के समय में यूएस सुपर पावर क्यूँ हैं, क्यूँकी उसका डॉलर ग्लोबल करेंसी है। लेकिन जरा सोचिए अगर डॉलर से ये जगह छिन जाए तो। भारत का रुपया या उसकी कोई तकनीक यहाँ राज करने लगे तो। कितना सुन्दर सपना है ना ये। पर ये सपना धीरे-धीरे हकीकत में बदल रहा। क्योंकि भारत के यूपीआई सिस्टम को सिंगापुर में लॉन्च किया गया है। इसके अलावा भूटान, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, हाँग-काँग, जापान और कोरिया जैसे अन्य देशों में लॉन्च होने वाला है। कहने का मतलब यह है कि घर बैठे या वहां जाकर भी यूपीआई से मनी ट्रांसफर हो जाएगा कुछ भी खरीदों। ऐसे ही दुनिया के अन्य देशों में भारत का यूपीआई पेमेंट सिस्टम स्वीकार कर लिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब आप भारत में बैठकर दुनिया के किसी भी कोने से ऑनलाइन शपिंग कर सकेंगे। कहीं भी भुगतान कर सकेंगे।

आईए आपको इसकी कहानी की शुरुआत में ले चलते है। 2011 में यानि एक दशक पहले तक एक उपभोगकर्ता द्वारा पूरे साल में केवल 6 ट्रांजेकसन होते थे। पूरे भारत में कुल एक करोड़ छोटे-बड़े शॉपकीपर्स कार्ड पेमेंट लेते थे। पर तब कार्ड से भुगतान इतना आम नहीं होता था। लोगों में इसकी पहुँच कम थी। इस मोड ऑफ पेमेंट से आम लोग दूर भागते थे। इसके लिए तीन कारण जिम्मेवार थे। पहला था तब सबके पास क्रेडिट कार्ड नहीं होता था। डेबिट कार्ड से पेमेंट लेने के लिए मशीन चाहिए होती थी। इसके अलावा ग्राहक का अकाउंट नंबर, आईएफएससी कोड, बैंक डीटेल की जरूरत होती थी। दूसरा कारण था कि व्यापरी वर्ग को हर कार्ड से ट्रांजेकसन पर मास्टर और वीजा कार्ड कंपनी को 2 प्रतिशस्त का भुगतान करना होता था। ये भुगतान छोटे और मझले दुकानदार के लिए बड़ी बात होती थी। इसके अलावा एटीएम से पैसे और कार्ड का चोरी होना और ना जाने कितने फ़्राड चलते थे। पाँच साल के भीतर 2016 में भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम ने यूपीआई लॉन्च किया। यूपीआइ मतलब यूनीफाईड पेमेंट्स इंटरफेस।

क्या करता है यूपीआई सिस्टम। पहले बैंक से पैसा निकालने और भरने के लिए लाइन लगाकर फॉर्म भरकर काम होता था। पर यूपीआई के माध्यम से ऐप ग्राहक की जगह बैंक से पैसा लेता और देता हैं। यानि आपका काम आपका सहयोगी यूपीआई कर रहा। एक ऐसा असिस्टेंट जो मुफ़्त में आपके बैंक से लेन देन करता है और जिसका पूरे भारत में एक जाल-सा है। इसकी मदद से अब आप मुंबई में बैठकर मेघालय, कश्मीर, वेस्ट बंगाल और केरल में भी पेमेंट कर सकते हैं। यूपीआई बैंक के द्वारा बना IMPS network का उपयोग करता है। भुगतान सुरक्षित हो इसलिए डुअल फैक्टर ऑथेन्टीकेशन करता है। इसमें ईमेल आईडी जैसा दिखने वाला आईडी आपका VPA यानि वर्चुअल पेमेंट एड्रेस है जो ग्राहक के मोबाईल नंबर के साथ ही उनके बैंक से भी लिंक हो जाता है। यह यूपीआई पेमेंट की प्रकिया भारत में इसलिए आसान हो गई है क्योंकि भारत में एक अरब लोग आधार कार्ड से लिंक हैं। यूपीआई का सबसे अच्छा गुण है इसका इन्टरओपेरेबिलिटी यानि अगर आप के पास पेटीएम का ऐप है और जहां से आपने कोई समान लिया उसके पास जीपे पेमेंट एप सिस्टम है तो आप अपने फोन से उसके जीपे के QR CODE को स्कैन कर के पेटीएम एप से अपने बैंक से पैसे जीपे पर भेज सकते हैं, यूपीआई के माध्यम से। हुआ ना मैजिक। मतलब आप किसी एक बैंक, किसी एक एप से बंधे हुए नहीं है। आप भुगतान करने के लिए स्वतन्त्र हैं। गौरतलब है कि बीते 21 अक्टूबर 2021 को यूपीआई ने 100 करोड़ डॉलर ट्रांजेकसन का आकड़ा पार कर लिया है। यूपीआई के प्रति रुचि बढ़ाने में फोनपे ने काफी अहम रोल निभाया। बीते साल कोरोना आने पर जब लॉक डाउन में नगद का लें-दें मुश्किल हुआ और लोग इससे घबराने लगे तब फोनपे ने अपने लोगों को छोटे दुकानदरों और रेडीवालों के पास भेजा। उनका बैंक डीटेल लिया इनको यूपीआई से लिंक किया उनको पेमेंट को सरल बनाने के लिए QR code दिया। इसके चलते यूपीआई का उपयोग बढ़ा। इस सिस्टम का प्रसार पूरे भारत में संभव हुआ। यूपीआई के महत्व को बताते हुए बैंक ऑफ बड़ोदा के मालिक कहते हैं कि यूपीआई ने भारत के साथ हमारी भी मदद की है। वर्ल्ड मार्केट में अपनी आईपीओ बढ़ाने में यूपीआई का बहुत सहयोग रहा है। यूपीआई के साथ सबसे खास बात यह है कि ये पर्यावरण फ़्रेंडली भी है। कैसे ? भारत में आरबीआई नोट बनाता और छापता है। ये बनते हैं पेड़ से। अगर भारत के लोग यूपीआई प्लेटफॉर्म से लें-दें करने लग जाएंगे तो नगद और नोट का चलन कम होगा और आरबीआई का बोझ भी कम होगा। अभी हाल ही में सरकार ने ये घोषणा भी की है कि यूपीआई पेमेंट बिना इन्टरनेट के भी हो सकता है।

सवाल ये है कि क्यों चीन, अमेरिका और ब्रिटेन भारत के इस नए तकनीक से जलते हैं। वजह है कि अभी इंटरनेशनल मार्केट में स्विफ्ट मंच है जो बड़े भुगतान करवाता है। हर दिन लगभग 3 करोड़ ट्रांजेकसन होता है स्विफ्ट की निगरानी में। ये एक संदेश वाहक मंच है। जिसका निर्माण 1977 में किया गया था। इस मंच पर  भुगतान के लिए बड़े बैंक 25 से 60 डॉलर प्रति भुगतान लेते है। जो कि कम हो सकता है अगर दुनिया भर के देशों में भारत के यूपीआई तकनीक को अपना लिया जाता है। वैसे भी अब ये स्विफ्ट सिस्टम बहुत पुराना हो चुका है। इंटेरनेट फ़्राड और जालसाजी वाले जमाने में इसकी उपयोगिता और सुरक्षा व्यवस्था संदेह के दायरे में आने लगी है। अगर यूपीआई को इस्तेमाल किया जाएगा जो की एक मुफ़्त मंच है भुगतान का। तब कितनी बचत हो सकती है। यह विचारयोग्य प्रश्न है? इसलिए दुनिया के बड़े देश भारत से इस तकनीक को सीखने के लिए पगलाये हुए हैं। भारत एक विकशील देश है जो करोड़ों उपभोक्ता वाला देश भी है। दुनिया के सभी देशों के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार भी है। इसलिए अब अन्य देश यूपीआई को मान्यता दे रहे है। भारत में अभी 100 करोड़ लोग यूपी का इस्तेमाल करते है। भारत के निवेश और उपभोक्ता बाजार को ध्यान में रखते हुए सभी बड़े देश भारत के सामने नतमस्तक है कि भारत उन्हें यूपीआई तकनीक का राज साझा कर दें। हम रोज अपने देश और उसके सिस्टम को बुरा कहते हैं। पर कभी-कभी देश का सिस्टम ऐसे काम कर देता है जो हर भारतीय के लिए गर्व और सम्मान का विषय भी बन जाता है। यूपीआई ऐसी ही एक तकनीक है।

महिमा सिंह

कॉपी राइटर एण्ड जर्नलिस्ट

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